डायरेक्टर संजय लीला भंसाली की सीरीज ‘हीरामंडी’ का इंतजार दर्शकों को काफी लंबे समय से कर रहे थे।

हीरा मंडी का इतिहास
15वीं और 16वीं शताब्दी के दौरान पाकिस्तान के लाहौर स्थित हीरा मंडी मुगलकाल के अभिजात्य वर्ग के लिए संस्कृति का केंद्र था। कभी लाहौर की इन गलियों में जाने पर हवेलियों से घुंघरू की आवाज आती थी। लगता था मानों पूरा शहर ही ढोलक की थाप पर थिरक रहा हो। यहां नाच गाना पेश करने वाली इन लड़कियों को ही तवायफ कहा जाता था। उस दौर में शायरी, संगीत, नृत्य और गायन जैसी कलाओं में तवायफों को महारत हासिल होती थी और एक कलाकार के तौर पर उनको बेहद इज्ज़त मिलती थी। मुग़ल काल में तवायफों और शाही मोहल्ले की ये शान बरक़रार रही लेकिन फिर 18वीं सदी में ये शानो शौकत उजड़ गई।
अंग्रेजी हुकूमत में तवायफें बनीं प्रॉस्टिट्यूड
बताते हैं कि अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण के दौरान हीरा मंडी का नाम पहली बार वेश्यावृत्ति से जुड़ा। सैनिकों ने उन महिलाओं के साथ वेश्यालय स्थापित किए जिन्हें उन्होंने आक्रमण के दौरान गुलाम बना दिया था। ब्रिटिश शासन काल में यह वेश्यावृत्ति का केंद्र बन गया। ब्रिटिश शासनकाल में हीरा मंडी धीरे-धीरे अपनी चमक खोने लगा। अंग्रेजों ने तवायफों को प्रॉस्टिट्यूड का नाम दिया। अंग्रेजों ने ही जबरदस्ती तवायफों को सेक्स वर्कर बनने पर मजबूर कर दिया। नतीजा, ये मोहल्ले बदनाम होते चले गए।